Skip to main content

आहिस्ता आहिस्ता

आहिस्ता आहिस्ता


कोरोना का कहर छाया आहिस्ता आहिस्ता,
देश की स्थिति बिगड़ रही आहिस्ता आहिस्ता ।

केवल एक ही उपाय है बचने का इससे,
सुरक्षित रह सकते हैं घर पर रहकर इससे ।।

लगाकर मास्क और धोकर हाथ,
बच सकते है इससे आहिस्ता आहिस्ता ।

अपनाएंगे 2 गज दूरी एक - दूसरे से,
बचेंगे सभी कोरोना से आहिस्ता आहिस्ता।।

(नागेन्द्र देवांगन)

Comments

Popular posts from this blog

बेटी हो सूरज की तरह

बेटी हो सूरज की तरह चाँद न बनाओ बेटी को, बनाओ बेटी को सूरज की तरह, बुरी नजर वालों की आंख चौन्ध जाय, फौलाद भर दो सूरज की तरह।। क्यों बनाते हो खिलौनों की तरह, कोमल की हैवान खेल जाता है, ता उम्र दर्द झेलनी पड़ती बेटी को, या मौत गले लगा लेती है, तैयार करो बेटी को इस तरह, अंगार भर दो भठ्ठी की तरह, चाँद न बनाओ बेटी को, बनाओ बेटी को सूरज की तरह।। कब तक रोती रहेगी बेटी, इस पापी संसार में, कब तक सहती रहेगी बेटी, अत्याचार इस सामाज में, अब तो हो उद्धार बेटियों का, काटों संग खिल जाय गुलाब की तरह, चाँद न बनाओ बेटी को, बनाओ बेटी को सूरज की तरह।। बेटी दुर्गा भी है लक्ष्मी भी है, वक्त पड़ने पर बनती काली भी है, देख रूप सरस्वती और सती का, ये दुनिया बेटी पर भारी भी है, वक्त है बनाओ रणचण्डी की तरह, तैयार हो जाय महाकाली की तरह, चाँद न बनाओ बेटी को, बनाओ बेटी को सूरज की तरह , बुरी नजर वालों की आंख चौन्ध जाय, फौलाद भर दो सूरज की तरह।।                      नागेन्द्र देवांगन

बहु और बेटी

बहु और बेटी बेटी बहू में कर अंतर माँ गलत करती हो, तुम भी बेटी बहु हुआ करती थी, क्यों भुला करती हो, जिस दिन तुम ये अंतर भूल जाओगी, बेटी और बहू को एक समान पाओगी।। समझती बोझ सास को माँ का दर्जा भूल गई, बहु तेरी संस्कार कहा धूल  गई, जिस दिन तुम सास को माँ समझ जाओगी, घर को स्वर्ग के सामान पाओगी।। दो बेटी को संस्कार बचपन से, न होता कोई अंतर  माँ और सास में, माँ सोचती बेटी सेवा न करें ससुराल में, और खुद आस लगाती अपने द्वार में, रहे दामाद के संग बेटी छोड़ परिवार को, यही अपने घर होता देख माँ बोलती, बेटा बदल गया पा के बहु के प्यार को ।। हर माँ ने दिया होता यह संस्कार बेटी को, बीच मजधार में न फसना पड़ता बेटे को, पीस जाता है बेटा बीवी और माँ के बीच, माँ को चुने तो बीवी से होना पड़े दूर, बीवी को चुने तो माँ से जाना पड़े दूर, इस बीच हालत क्या होगी उस बेटे की, जो चाहता सबको एक समान हो, हो जाता उसके लिये जैसे घर एक शमशान हो ।। है गुजारिश नाग की, दो संस्कार सबको लड़कपन से, हो दूर कुसंस्कार हर एक के  जीवन से, बहु बेटी का अंतर हट जाए इस उपवन से