विज्ञापन वाली सरकार
कोरोना का कहर छाया है देश में,
हाहाकार मचा है विश्व में,
देश की जनता इससे झूझ रही है,
देश बन्द की घोषणा हुई है देश में,
राशन पानी उपलब्ध करानी है अब सरकार को,
लगे है सब राजनेता इस व्यपार को,
कैसे पहुँचाया जाए राशन का पैकेट जनता के द्वार को।।
फिर उजागर हुई इनकी गंदी राजनीति का गंदा खेल,
छायी हुई थी आपात की स्थिति देश में,
जिस पर ये चंद स्वार्थी राजनीति के नुमाइंदे,
खेल रहे थे राजनीति का गंदा खेल,
तैयार किया जा रहा था राशन का पैकेट,
जिससे भरा जा सके एक एक गरीब का पेट,
यहाँ पर भी न चूके खेलने को ये विज्ञापन का खेल,
सरकार की नाम और फोटो छप गई थैले के ऊपर,
कोई न सोचा छाया था संकट भारत माता की होठों पर।
पूछता हूँ किसका पैसा और समय बर्बाद किया तूने,
किस हक से जनता की कमाई लुटा दी तूने बेफिजूल,
स्वार्थ में इतना डुब गया तू नजर न आया देश का दुख,
संकट की इस घड़ी में सारे देश को होना था एकजुट,
राजनीति के चंद नुमाइंदे न चुके डालने को देश में फूट।।
क्या कहूँ मैं इस विज्ञापन वाली सरकार को,
संकट की घड़ी में निस्वार्थ सेवा न दे सका देश को,
ये बचाने आये थे कोरोना की संकट से देश को,
व्यापार का गंदा खेल खेल गए
जब संकट मंडरा रहा था देश पर,
ढोंग क्यों करता देना है तो पूरा दे
निश्वार्थ सेवा देश पर,
बाटें गए घर घर राशन का पैकेट,
पैसा और समय बर्बाद कर,
मिट गई इनकी सत्ता की भूख,
मार कर लात गरीब की पेट पर।।
तू समझता है तेरा ही चलेगा भ्रम में मत रहना,
प्रकृति का अपना एक व्यवहार है,
प्रकृति के आगे सब लाचार है,
सटीक उदाहरण दे रहा कोरोना का कहर है,
जिससे ये दुनिया न तो तू बेखबर है,
अब भी है मौका सुधर जाओ, वरना,
प्रकृति अपना प्रकोप दिखाने खड़ी तैयार है..।।
नागेन्द्र देवांगन
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