बहु और बेटी
बेटी बहू में कर अंतर माँ गलत करती हो,
तुम भी बेटी बहु हुआ करती थी, क्यों भुला करती हो,
जिस दिन तुम ये अंतर भूल जाओगी,
बेटी और बहू को एक समान पाओगी।।
समझती बोझ सास को माँ का दर्जा भूल गई,
बहु तेरी संस्कार कहा धूल गई,
जिस दिन तुम सास को माँ समझ जाओगी,
घर को स्वर्ग के सामान पाओगी।।
दो बेटी को संस्कार बचपन से,
न होता कोई अंतर माँ और सास में,
माँ सोचती बेटी सेवा न करें ससुराल में,
और खुद आस लगाती अपने द्वार में,
रहे दामाद के संग बेटी छोड़ परिवार को,
यही अपने घर होता देख माँ बोलती,
बेटा बदल गया पा के बहु के प्यार को ।।
हर माँ ने दिया होता यह संस्कार बेटी को,
बीच मजधार में न फसना पड़ता बेटे को,
पीस जाता है बेटा बीवी और माँ के बीच,
माँ को चुने तो बीवी से होना पड़े दूर,
बीवी को चुने तो माँ से जाना पड़े दूर,
इस बीच हालत क्या होगी उस बेटे की,
जो चाहता सबको एक समान हो,
हो जाता उसके लिये जैसे घर एक शमशान हो ।।
है गुजारिश नाग की,
दो संस्कार सबको लड़कपन से,
हो दूर कुसंस्कार हर एक के जीवन से,
बहु बेटी का अंतर हट जाए इस उपवन से,
माँ सास का भेद मिट जाए इस गगन से,
तो सोच कितना सुंदर परिवार होगा,
घर घर स्वर्ग का दीदार होगा ।।
नागेन्द्र देवांगन
Really nice bro,it's appreciable.
ReplyDeleteThanks Brijendra Bhai
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