Skip to main content

Posts

मित्रता

मित्रता दो अंजान परिंदों के बीच कायम ये रिश्ता है, बन जाये दिल से दिल तक ये वो रिश्ता है, जो बिना शर्त के निभाया जाए  मरते दम तक, ऐसा अटूट ,अविरल, अनंत ये  रिश्ता है। सगे संबधी सब जब छोड़ जाये, फिर भी ये साथ निभाये, हो सुख चाहे दुख की घड़ी, इस रिश्ते पर कभी आँच न आये।  चाँद की तरह कोमल होती इसकी छाया, मित्र के जीवन में अगर संकट आया, करता रक्षा मित्र की बनकर छत्रछाया, वक़्त आने पर जान पर खेल जान बचाया। कभी रुसवा ना हो मित्र इस बात का ख्याल रखना, कोई बात कभी ना दिल में दबाए रखना, किसी पराए की बात में कभी ना आना, चाहे जो हो जाए मित्र पर विश्वास बनाए रखना। हो बात अगर दिल में बेझिझक कह देना मित्र से, ना छुपाना कोई बात ना रखना कभी शंका, जान चली जाए तो कोई गम नहीं होगा, मगर धोखा मिले सच्चे मित्र से, इससे बड़ा कोई सजा नहीं होगा।।                                     नागेन्द्र देवांगन
Recent posts

निष्काम कर्म

निष्काम कर्म कर्म प्रधान है ये दुनिया, फल पर किसी का बस नहीं, कर्तव्य समझ हर कर्म करो, इससे बढ़ कर कोई धर्म नहीं। फल की इच्छा त्याग कर, उचित कर्म तू करता जा, फल तुझे अवश्य मिलेगा, प्रभु की ईच्छा समझ कर, बस तू स्वीकार करता जा।  मोह का बंधन त्याग कर, निष्काम कर्म तू करता जा, मोक्ष तुझे अवश्य मिलेगा, प्रभु का नाम बस जपता जा। यही है गुढ़ रहस्य कर्मयोग का, आवागमन से तू मुक्त हो जाएगा, मिलेगा प्रभु की शरण तुझे, लोक कल्याण  तू करता जा।। निष्काम कर्म ही है एक उपाय, जो इस भवसागर से पार कराय, गीता का यही है एक उपदेश, इसी से मोक्ष का द्वार खुल जाय। नागेन्द्र देवांगन

आरक्षण

आरक्षण आरक्षण आरक्षण सुन सुन कर कान पक गये है। क्या है ये आरक्षण?? इस आरक्षण के कारण आज हमारा देश पंगु बन गया है, अपाहिज की भांति हो गया है। इस आरक्षण के कारण देश का विकास जैसे चींटी की चाल चल रही हो। यहां आरक्षण के नाम पर राजनीति होती है। आरक्षण वोट बैंक बन गया है। पूछता हूँ क्या संविधान निर्माता श्री भीम राव अम्बेडकर जी ने इसी दिन के लिए आरक्षण का प्रावधान रखा था संविधान में। नहीं, उन्होंने ने तो सिर्फ 10 वर्ष के लिए अस्थायी रूप से आरक्षण का प्रावधान सविंधान में रखा था। ताकि आजादी के पूर्व जो शोषित वर्ग थे, जिन्हें जाती व्यवस्था के कारण ऊंच नीच के भेदभाव के कारण सामाजिक एवं सरकारी  लाभ एवं गतिविधियों से वंचित रहना पड़ा था। उन शोषित वर्ग के लोगों के विकास के लिए आरक्षण का प्रावधान कुछ वर्षों के लिए किया गया था। उन तत्कालीन शोषित वर्ग के लोगों को उनका अधिकार दिलाने के लिए और यह आवश्यक भी था। ताकि उनके साथ जो अन्याय हुआ है जिसके कारण वह समाज से दूर रहे हैं उनका विकास नहीं हो पाया है तो इस आरक्षण का लाभ लेकर वे अपना विकास  कर समाज में अपना एक उचित स्थान बना सकें जिसके लिए प्रार

आहिस्ता आहिस्ता

आहिस्ता आहिस्ता कोरोना का कहर छाया आहिस्ता आहिस्ता, देश की स्थिति बिगड़ रही आहिस्ता आहिस्ता । केवल एक ही उपाय है बचने का इससे, सुरक्षित रह सकते हैं घर पर रहकर इससे ।। लगाकर मास्क और धोकर हाथ, बच सकते है इससे आहिस्ता आहिस्ता । अपनाएंगे 2 गज दूरी एक - दूसरे से, बचेंगे सभी कोरोना से आहिस्ता आहिस्ता।। (नागेन्द्र देवांगन)

सच्चा प्रेम और त्याग

सच्चा प्रेम और त्याग सच्चा प्रेम वही है, जिसकी भवना त्याग हो। प्रेम के लिए माँ बाप का नहीं,  माँ बाप के लिये प्रेम का त्याग हो, सच्चा प्रेम वही है, जिसकी भवना त्याग हो।। न पाने की आस हो, न अपनी खुशी की तलाश हो, बस तेरी खुशी में अपनी खुशी का एहसास हो, गम न छू पाए तुझे ये तमन्ना है मेरी, जहाँ भी रहो खुशहाली तुम्हारे पास हो।। अपनी कहानी सच्चे प्रेम की है निसानी, न कभी मिले न इजहार हुआ, फिर भी बेइंतहा प्यार हुआ, दिल में दफन कर ली उसने हर आरजू अपनी,   उसके दिल की हर आवाज हमनें महसूस किया,, कभी जूबां पे लायी न अपनी, पर हर लब्ज मेरे दिल ने सुन लिया ।।  आयी जब रुत जुदाई की ,  तुम्हारा  दिल भी तड़प उठी होगी, कुछ कहना था पर कह न सकी, जुबां पे माँ बाप का नाम आयी थी,, बोली आपको कुछ सालो से हूँ जानती, माँ बाप ने तो मुझे दी सारी जिंदगी, कैसे भूल जाऊं उनका प्यार, करूँ ता उम्र उनकी  मैं बंदगी।। ये सुन मेरे दिल की आवाज सुन हो गई, देख त्याग की मूरत हवा भी रुन्द हो गई, मुझे गर्व है मेरे प्यार पर, जो भंग हो गई, जिससे हुआ वो तरंग हो गई, सच्च

बहु और बेटी

बहु और बेटी बेटी बहू में कर अंतर माँ गलत करती हो, तुम भी बेटी बहु हुआ करती थी, क्यों भुला करती हो, जिस दिन तुम ये अंतर भूल जाओगी, बेटी और बहू को एक समान पाओगी।। समझती बोझ सास को माँ का दर्जा भूल गई, बहु तेरी संस्कार कहा धूल  गई, जिस दिन तुम सास को माँ समझ जाओगी, घर को स्वर्ग के सामान पाओगी।। दो बेटी को संस्कार बचपन से, न होता कोई अंतर  माँ और सास में, माँ सोचती बेटी सेवा न करें ससुराल में, और खुद आस लगाती अपने द्वार में, रहे दामाद के संग बेटी छोड़ परिवार को, यही अपने घर होता देख माँ बोलती, बेटा बदल गया पा के बहु के प्यार को ।। हर माँ ने दिया होता यह संस्कार बेटी को, बीच मजधार में न फसना पड़ता बेटे को, पीस जाता है बेटा बीवी और माँ के बीच, माँ को चुने तो बीवी से होना पड़े दूर, बीवी को चुने तो माँ से जाना पड़े दूर, इस बीच हालत क्या होगी उस बेटे की, जो चाहता सबको एक समान हो, हो जाता उसके लिये जैसे घर एक शमशान हो ।। है गुजारिश नाग की, दो संस्कार सबको लड़कपन से, हो दूर कुसंस्कार हर एक के  जीवन से, बहु बेटी का अंतर हट जाए इस उपवन से

बेटी हो सूरज की तरह

बेटी हो सूरज की तरह चाँद न बनाओ बेटी को, बनाओ बेटी को सूरज की तरह, बुरी नजर वालों की आंख चौन्ध जाय, फौलाद भर दो सूरज की तरह।। क्यों बनाते हो खिलौनों की तरह, कोमल की हैवान खेल जाता है, ता उम्र दर्द झेलनी पड़ती बेटी को, या मौत गले लगा लेती है, तैयार करो बेटी को इस तरह, अंगार भर दो भठ्ठी की तरह, चाँद न बनाओ बेटी को, बनाओ बेटी को सूरज की तरह।। कब तक रोती रहेगी बेटी, इस पापी संसार में, कब तक सहती रहेगी बेटी, अत्याचार इस सामाज में, अब तो हो उद्धार बेटियों का, काटों संग खिल जाय गुलाब की तरह, चाँद न बनाओ बेटी को, बनाओ बेटी को सूरज की तरह।। बेटी दुर्गा भी है लक्ष्मी भी है, वक्त पड़ने पर बनती काली भी है, देख रूप सरस्वती और सती का, ये दुनिया बेटी पर भारी भी है, वक्त है बनाओ रणचण्डी की तरह, तैयार हो जाय महाकाली की तरह, चाँद न बनाओ बेटी को, बनाओ बेटी को सूरज की तरह , बुरी नजर वालों की आंख चौन्ध जाय, फौलाद भर दो सूरज की तरह।।                      नागेन्द्र देवांगन