मित्रता दो अंजान परिंदों के बीच कायम ये रिश्ता है, बन जाये दिल से दिल तक ये वो रिश्ता है, जो बिना शर्त के निभाया जाए मरते दम तक, ऐसा अटूट ,अविरल, अनंत ये रिश्ता है। सगे संबधी सब जब छोड़ जाये, फिर भी ये साथ निभाये, हो सुख चाहे दुख की घड़ी, इस रिश्ते पर कभी आँच न आये। चाँद की तरह कोमल होती इसकी छाया, मित्र के जीवन में अगर संकट आया, करता रक्षा मित्र की बनकर छत्रछाया, वक़्त आने पर जान पर खेल जान बचाया। कभी रुसवा ना हो मित्र इस बात का ख्याल रखना, कोई बात कभी ना दिल में दबाए रखना, किसी पराए की बात में कभी ना आना, चाहे जो हो जाए मित्र पर विश्वास बनाए रखना। हो बात अगर दिल में बेझिझक कह देना मित्र से, ना छुपाना कोई बात ना रखना कभी शंका, जान चली जाए तो कोई गम नहीं होगा, मगर धोखा मिले सच्चे मित्र से, इससे बड़ा कोई सजा नहीं होगा।। नागेन्द्र देवांगन
निष्काम कर्म कर्म प्रधान है ये दुनिया, फल पर किसी का बस नहीं, कर्तव्य समझ हर कर्म करो, इससे बढ़ कर कोई धर्म नहीं। फल की इच्छा त्याग कर, उचित कर्म तू करता जा, फल तुझे अवश्य मिलेगा, प्रभु की ईच्छा समझ कर, बस तू स्वीकार करता जा। मोह का बंधन त्याग कर, निष्काम कर्म तू करता जा, मोक्ष तुझे अवश्य मिलेगा, प्रभु का नाम बस जपता जा। यही है गुढ़ रहस्य कर्मयोग का, आवागमन से तू मुक्त हो जाएगा, मिलेगा प्रभु की शरण तुझे, लोक कल्याण तू करता जा।। निष्काम कर्म ही है एक उपाय, जो इस भवसागर से पार कराय, गीता का यही है एक उपदेश, इसी से मोक्ष का द्वार खुल जाय। नागेन्द्र देवांगन